कार्यशील पूँजी दिवस की अवधारणा
डाॅ. आराधना शुक्ला1, डाॅ. अशेाक शर्मा2
1सहाप्राध्यापक वाणिज्य, आर.आई.टी.ई.ई. काॅलेज, रायपुर (छ.ग.)
2सहाप्राध्यापक वाणिज्य, जे.योगानंदम् छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
एक कंपनी अपने व्यापार के संचालन हेतु आवश्यक पूंजी लगाती है जैसे की कच्चे माॅल क्रय , निर्मित माॅल को उधार पर देना जिसके कारण उसकी देनदारी में पूंजी कुछ समय के लिए फंस जाती है, कार्यशील पूँजी दिवस की गणना से हमे ज्ञात होता है कि कितने दिनों में ये पूंजी कंपनी को वापस मिल सकती है। यदि कार्यशील पूंजी कंपनी को शीघ्र वापस मिल जाती है तो इसका अर्थ है कि कंपनी के वित्तीय हालत बेहतर है । और उसे रोजमर्रा के काम काज चलाने मे कोई दिक्कत नहीं आएगी ।
कार्यशील पूँजी दिवस
प्रस्तावना -
व्यवसाय के संचालन से सम्बन्धित दिन प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ सम्पत्तियों की आवश्यकता होती हैं। इन सम्पत्तियों में रोकड़ , प्राप्त विपत्र , विनियोग , कच्चा माल एवं अल्पकालीन ऋण आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन सम्पत्तियों में विनियोजित पूंजी को कार्यशील पूंजी को कार्यशील पूंजी कहते हैं। कार्यशील पूंजी व्यवसाय के दिन प्रतिदिन के आवश्यकताओं की पूर्ति एवं प्रगति हेतु स्थिर सम्पत्तियों के लिए भी पर्याप्त पूंजी की व्यवस्था करती है। किसी भी कोष की प्राप्ति जो चालू सम्पत्तियों को बढ़ाता है। उस कोष को कार्यशील पूॅजी की संज्ञस दी जाती है।
कार्यशील पूंजी प्रबन्ध - व्यवसाय में पर्याप्त मात्रा में कार्यशील पूंजर का होना आवश्यक है। इस दृष्टि से व्यवसाय की परिस्थितयों को ध्यान में रखतें हुए कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध का उद्देश्य संस्था की चालू सम्पŸिायों एवं चालू दायित्वों के मध्य इस प्रकार सामंजस्य स्थापित करना होता है कि, कार्यशील पूंजी की मा़त्रा का निर्धारण अनुकूलतम हो सके । अतः कार्यशील पूंजी की मा़त्रा का निर्धारण अनुकूलम हो सके । अतः कार्यशील पूंजी का प्रबन्ध विŸाीय प्रबन्ध का आंतरिक भाग है। इसलिए कार्यशील पूंजी का प्रबन्ध एक संस्था के आर्थिक स्त्रोतों पर नियंत्रण करने एवं उसकी लाभदायिकता को बनाये रखने में सहायक सिद्ध होता हैं कार्यशील पूंजी का प्रबन्ध उस संस्था की जोखिम, तरलतर एवं लाभदायिकता के बीच सही सामंजस्य बनाए रखने में सहायता करता है।
कार्यशील पूंजी दिवस के आधार पर यह ज्ञात किया जाता है कि देनदारी की वापसी कितने दिन मे होता है । जिसकी गणना निम्न सू़त्र कि जाती है -
कार्यशील पूंजी दिवसत्र कार्यशील पूंजी × 365/विक्रय
ऊपर दी हुई चारो कंपनियों की कार्यशील पूंजी की अवधारणा देख कर ये पता लगता है की वर्धमान टेक्सटाइल्स अपनी पूंजी औरो के मुकाबले ज्यादा दिनों के लिए बिज़नेस मे फंसा के रखती है। इसका अर्थ यह है की जिन ग्राहकों को कंपनी अपना माल बेचती है को काफी दिनों के बाद उधार चुकता करते है अर्थात कंपनी के ग्राहक वृहद मात्रा मे कंपनी के उत्पाद का क्रय करते है अतः भुगतान मे समय लगता है। अतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि कार्यशील पूंजी दिवस ना केवल देदारी वापसी की अवधि अपितु उपभोताओं की स्थिति का अध्ययन किया जा सकता है।
1. वशिष्ठ, जे. कल्याणी पब्लिकेशन,’’वित्तीय प्रबन्ध‘‘
2. प्रतियोगिता दर्पण
3. गुप्ता के.एल. सहित्य भवन प्रकाशन
Received on 28.04.2018 Modified on 12.05.2018
Accepted on 20.05.2018 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(2):123-124.